राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)
एहसान - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2021
कोरोना को रोकने,
वैक्सीन बन के आ गई।
संजीवनी सी समूचे,
समुदाय मन ये छा गई।।
जानें हज़ारों ले चुका जो,
रोज़गार लाखों खा चुका जो।
शिक्षा को चौपट कर चुका जो,
उसे खाने वैक्सीन ये अब आ गई।।
पंजीकरण नित हो रहे हैं,
टीके बराबर लग रहे हैं।
भगे नहिं गर कोरोना-क्रूर भय से,
वैक्सीन भय से जाने क्यों कइ भग रहे हैं।।
वैक्सीन है गर लग गयी,
कोरोना न फिर उसके छुएगा।
जीवन सुरक्षित हो गया,
कोरोना से न कोई फिर मुयेगा।।।
धन्य हो विज्ञान,
तुझको नमन मेरा,
देर से ही भले,
कोरोना को तो घेरा।।
दवा तूने रची,
औ डॉक्टर रचा।
पर न वह भी
कोरोना से कोरा बचा।।
करोड़ों की जान पर
मंडराता ख़तरा टल गया अब।
इस अदृश्य अरि विषाणु पर,
ये वार तेरा फल गया अब।।
एहसान ऐ विज्ञान!
ये मुझ पर तेरा।
नहिं भूलूँगा, लौटाऊँगा,
चल पायेगा गर बस मेरा।।
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