अजय गुप्ता "अजेय" - जलेसर (उत्तर प्रदेश)
वीर विनायक दामोदर सावरकर - आलेख - अजय गुप्ता "अजेय"
गुरुवार, अप्रैल 01, 2021
महान स्वतंत्रता सैनानी वीर विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वात्रंत्य संग्राम के एक दैदीप्यमान प्रकाशपुंज है।
भारतीय राष्टध्वज पताका 'तिरंगे' पर बना धर्मचक्र सावरकर की अभिनव सोच का प्रतिबिंब है।
वीर सावरकर एक भाषाविद, वुद्धिजीवी, कवि लेखक, क्रांतिकारी ओजस्वी वक्ता थे। उनका जन्म ग्राम भागुर जिला नासिक महाराष्ट्र में २८ मई १८८३ को हुआ था।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में वीर विनायक दामोदर सावरकर उग्र क्रांतिकारी विचारधारा के संवाहक थे।
सावरकर की क्रांतिकारी गतिविधियां भारत और ब्रिटेन में उनके अध्ययन के दौरान संज्ञान में आई।
वे इंडिया हाउस से जुडे हुए थे एंव विभिन्न छात्र संगठनों के संस्थापक भी थे। सावरकर ने 'अभिनव भारती' नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की एंव एक गुप्त सोसायटी 'मित्र मेला' बनाई थी। वह इन संगठनों द्वारा गोपनीय तरीके से देश में क्रांति की ज्वाला जलाते थे।
सावरकर स्वदेशी अवधारणा के स्तंभ थे। उन्होनें सर्वप्रथम विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान कर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी। सावरकर दुनिया के ऐसे पहले और एकमात्र लेखक थे जिनकी पुस्तक को प्रकाशित होने से पूर्व ही ब्रिटिश एंव ब्रिटिश सम्राज की सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया।
उन्होनें ब्रिटेन से वकालत की शिक्षा पूरी की लेकिन राजसत्ता की दासता के प्रतीक अभिलेख पत्र पर हस्ताक्षर करने से इंकार के कारण वकालत के अधिकार से वंचित कर दिए गए।
सावरकर ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें एक जीवन में दो आजन्म सजा मिली थी जिसमें एक कालापानी की सज़ा भी थी। उन्होनें जीवन के तीन दशक जेल में बिताए थे जिसमें अंडमान की सेल्युलर जेल में बिताया एक दशक की कठोर यातना भी थी।
विपरीत परिस्थितियों में पत्थर और कोयले से जेल की दीवार पर लगभग चार हजार कविताएँ लिखी और कंठस्थ कर ली जिनका रिहा होने पर संकलन कर लिपिबद्ध किया।
उनका लिखा 'सन १८५७ स्वात्रंत्य समर' ग्रंथ क्रातिकारियों में गीता समान सम्मान मिला जिससे ब्रिटिश हुकूमत भी घबरा गयी थी।
सावरकर मराठी भाषी होते हुए भी हिंदी भाषा के पैरोकार एंव हिन्दू राष्ट्र प्रणेता थे। सावरकर एक समाज सुधारक साहित्यकार भी थे। उनके कई काव्यसंग्रह आलेख प्रकाशित हुए थे।
आज़ादी के बाद कांग्रेस की सरकार ने नेहरू के नेतृत्व में सावरकर की छवि को धूमिल करने के लिए ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़कर पेश करने की साज़िश की थी।
उनके द्वारा अंग्रेजों को लिखे माफ़ीनामा को गलत तरीके से पेश किया जोकि उन्होने जेल से बाहर आकर क्रांति अलख जलाने के लिए एक योजना के तहत दिया था।
२६ जनवरी १९६६ को बम्बई में आज़ादी का महान सैनानी वीर विनायक दामोदर सावरकर, माँ भारती के आँचल में चिरनिंद्रा में ब्रह्मलीन हो गया। महामहिम कलाम ने अटल सरकार के निर्णय पर संसद के सभागार में वीर विनायक दामोदर सावरकर की प्रतिमा स्थापित कर भारतीय स्वात्रंतता इतिहास के इस सैनानी की गौरवगाथा को अमर बना दिया।
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