डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली
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द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तुति - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग स्तुति - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
शुक्रवार, मार्च 12, 2021
सोमनाथ सौराष्ट्र में, करुणाकर अवतार।
चारु चन्द्र धर शिखर शिव, गंगाधर संसार।।१।।
उच्च शिखर श्रीशैल पर, प्रमुदित देव निवास।
पूज्य मल्लिकार्जुन सदा, बाघम्बर कैलाश।।२।।
अकालमृत्यु रक्षक प्रभु, मोक्ष प्रदाता सन्त।
महाकाल उज्जैन में, महिमा नमन अनंत।।३।।
कावेरी नर्मद मिलन, पावन निर्मल धार।
ओंकारेश्वर शिव करे, भवसागर से पार।।४।।
चिताभूमि पूर्वोत्तरी, सदा वास गिरिजेश।
देवासुर पूजित मनुज, बैद्यनाथ परमेश।।५।।
आभूषण सज्जित प्रभु, दक्षिण क्षेत्र सदंग।
भक्ति मुक्ति दाता स्वयं, नागेश्वर अर्धाङ्ग।।६।।
बसे सदा केदार तट, नीलकंठ केदार।
मुनि देवासुर यक्ष अहि, पूजित शिव संसार।।७।।
दर्शन दे पातक हरो, सह्यशिखर उत्तुंग।
बसे त्र्यम्बकेश्वर प्रभु, मानस शिव जय गुंज।।८।।
सेतु बना निज बाण से, उच्छल जलधि तरंग।
रामेश्वर शिव स्थापना, राम भक्ति नवरंग।।९।।
भूत प्रेत सेवित सदा, नमन करूँ करुणेश।
डाकशाकिनी वृन्द में, भीमशंकर जटेश।।१०।।
विश्वनाथ शरणं व्रज, काशीपति भगवान।
हरो पाप पातक मनुज, शरणागत वरदान।।११।।
ज्योतिर्मय भगवान् प्रभु, इलापुरी रनिवास।
घृष्णेश्वर समुदार शिव, करूँ नमन उपवास।।१२।।
पूजन विधि पूर्वक करूँ, धतुर भांग बेलपत्र।
थाल सजा शिव आरती, गाऊँ मंगल मंत्र।।१३।।
कर ताण्डव विकराल बन, धर त्रिशूल अरि नाश।
द्वादश ज्योतिर्लिङ्ग शिव, त्रिपुरारी जन आश।।१४।।
सत्य शिवम नित सुन्दरम, सुखमय हो संसार।
महाकाल गौरीश तव, महिमा अपरम्पार।।१५।।
फिर सीता आहत विकल, कलि रावण दुष्कर्म।
रक्षण कर शिव द्रौपदी, सती लाज रख धर्म।।१६।।
संकट में माँ भारती, क्लेशित निज गद्दार।
प्रलयंकर शंकर विभो, करो दनुज संहार।।१७।।
दुश्शासन करता हरण, भरी सभा निर्लाज।
ठोक रहा निज जांघ को, दुर्योधन आवाज।।१८।।
पुन: उठाओ पाशुवत, हे त्रिनेत्र भु्वनेश।
नंदीश्वर तारक दमन, महादेव हर क्लेश।।१९।।
शूलपाणि जगदीश शिव, हरो जगत संताप।
कर निकुंज कुसमित सुरभि, जलता ख़ुद मन पाप।।२०।।
आज महाशिवरात्रि में, रख पूजन उपवास।
परिणय गौरी-शिव प्रभो, दर्शन मन अभिलाष।।२१।।
भज अर्धनारीश्वर शिव, मिटे सकल जग शोक।
कटे रोग मद मोह जग, मिले सत्य आलोक।।२२।।
जनक हिमालय मुदित मन, माँ मेना भर नैन।
रोमांचित गौरी शुभा, मदनेश्वर हर चैन।।२३।।
बाघम्बर विश्वेश शिव, करें जगत कल्याण।
रोग शोक परिताप से, शिवशंकर कर त्राण।।२४।।
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