सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)
मित्र और मित्रता - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
गुरुवार, मार्च 18, 2021
मित्रता का अपना अपना
उसूल होता है,
मित्रता के अनुभव भी
बहुत खट्टे मीठे होते हैं।
सच तो यह है कि मित्र
बनाए नहीं जाते
बन जाते हैं,
हम चाहें या न चाहें
बस दिल में उतर जाता है।
न जाति धर्म मज़हब
न ही स्त्री या पुरुष का भाव
बस वो अपना सिर्फ़ अपना ही
नज़र आता है।
उसका हर क़दम, हर भाव
उसकी सोच, उसकी चिंता
अपनेपन का बोध कराता है।
उसके हर विचार
रूठना, मनाना, डाँटना, समझाना,
और तो और
अधिकार समझना
गुस्से में लाल तक हो जाना भी,
तो कभी कभी आँसू बहाना
हमारे दुर्व्यवहार को भी
शिव बन पी जाना,
माँ, बाप, बहन, भाई,
मित्र जैसे रिश्ते निभाना,
हमारी खुशी के लिए
सब कुछ सहकर भी
हँसकर टाल जाना,
पूर्व जन्म के रिश्तों का
अहसास दे जाना
सच्चे मित्र की पहचान है।
उम्र का अंतर
मायने नहीं रखता
क्योंकि हमें ख़ुद-ब-ख़ुद
उसके क़दमों में झुक जाने का
मन भी करता,
उसके प्रति श्रद्धा बढ़ती जाती
उसमें ही अपना सबसे बड़ा
शुभचिंतक, भाई, बहन के रुप में
मित्र मित्र नहीं भगवान नज़र आता।
परंतु अफ़सोस तब होता है
जब मित्र के रूप में हमें
शैतान मिल जाता है।
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