राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)
पता नहीं - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
मंगलवार, मार्च 02, 2021
किसके लिए लिखें किताब,
आजकल कौन पढ़ता है?
हर शख़्स खरगोश की दौड़ से बढ़ता,
किताबी कहानियों के पीछे कहाँ पड़ता है।।
विचारों में अब कहाँ वो दृढ़ता है,
हर शख़्स हवस और स्वार्थ के लिए लड़ता है।
काम कम, कमाई भारी-भरकम,
बस यही स्वप्न गढ़ता है।।
व्यक्तित्व में अब कहाँ वो स्थायित्व है,
कृतित्व में अब कहाँ वो स्वत्वायित्व है।
हर कोई, अपना अपराध,
हमेशा औरों के माथे में मढ़ता है।।
दृष्टि में अब कहाँ वो व्यग्रता है,
श्रवण में अब कहाँ वो एकाग्रता है।
दौलत के लिए दूसरे तो दूर,
स्वजनों से भी लड़ पड़ता है।।
न्याय में अब कहाँ वो निष्पक्षता है,
नीति में अब कहाँ वो स्पष्टता है।
झूठ की झक-मक में,
सत्य धुँधला-धुँधला सा लगने लगता है।।
दायित्व में अब वो समर्पण कहाँ है,
चेहरे के दाग दिखा दे जो, अब वो दर्पण कहाँ है।
कृत्रिमता से ढकी असलियत को छुपाते-छुपाते,
आइना भी अवाक सा खड़ा दिखाई पड़ता है।।
भीड़, जो मदिरालयों में है, पुस्तकालयों में कहाँ है?
जो भीड़ वैश्यालयों में है, विद्यालयों में कहाँ है?
दारू की दरिया में नोट की वोट में सवार,
अच्छे-खासे तैराक को भी तट मुश्किल जान पड़ता है।।
समाज में वो साम्य अब कहाँ रहा,
मानव में, वो महात्म्य अब कहाँ रहा।
कम्प्यूटर, टीवी, मोबाइल, तकनीक का प्रभाव,
नकल के बाज़ार में अकल का अभाव,
पता नहीं, क्या विद्वता, क्या जड़ता है।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर