आलोक रंजन इंदौरवी - इन्दौर (मध्यप्रदेश)
ख़्वाब जब भी नया देखना तुम कभी - ग़ज़ल - आलोक रंजन इंदौरवी
शुक्रवार, अप्रैल 30, 2021
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
तक़ती : 212 212 212 212
ख़्वाब जब भी नया देखना तुम कभी,
अपने घर की तरफ़ लौटना तुम कभी।
ख़्वाब देखा तो देखा क्या अपने लिए,
दूसरों के लिए सोचना तुम कभी।
ज़िंदगी का सफ़र यूँ तो आसान है,
नेकियों से न मुँह मोड़ना तुम कभी।
जब भी मौक़ा मिले कोई उपकार का,
तब न इंसानियत छोड़ना तुम कभी।
एक सा वक़्त रहता कहाँ है यहाँ,
फ़लसफ़ा ज़िंदगी बाँचना तुम कभी।
दिल को दरिया बनाना ज़रा सीख लो,
हद न अपनी कभी लाँघना तुम कभी।
दिल ना टूटे किसी का तेरे कर्म से,
हर क़दम पर स्वयं जाँचना तुम कभी।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर