प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
सतरंगी यादें - ग़ज़ल - प्रदीप श्रीवास्तव
सोमवार, अप्रैल 12, 2021
सतरंगी तेरी याद ने कल रात जब छुआ,
मैं खो गया ख़्वावों में तेरे जाने क्या हुआ।
मैं आज जिस मुकाम पर हूँ ऐ मेरे सनम,
सब है कमाल प्यार का तेरी है ये दुआ।
इक वक़्त था बचपन का आज वक़्त दूसरा,
कुछ हारा है कुछ जीता ज़िंदगी का ये जुआ।
कुछ बोललो हँसलो ज़रा सा पास आ बैठो,
साँसें हैं घड़ी चार कीं उड़ जाए कब सुआ।
दो वक़्त की मिल जाये रूखी-सूखी ही सही,
फिर उनको तमन्ना नहीं थाली में हो पुआ।
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