सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)
नारी शक्ति: आदिशक्ति - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
शुक्रवार, अप्रैल 16, 2021
आदिशक्ति जगत जननी का
इस धरा पर
जीवित स्वरूप हैं
हमारी माँ, बहन, बेटियाँ
हमारी नारी शक्तियाँ।
जन्म से मृत्यु तक
किसी न किसी रुप में
हमारी छाँव बनी रहती हैं
हमारी नारी शक्तियाँ।
ममता की मूर्ति ही नहीं
समय आने पर हमारे लिए
संहारक बन चंडी भी बनती
हमारी नारी शक्तियाँ।
जल सी सरल है तो
पत्थर सी कठोर भी,
घर में गृहलक्ष्मी है तो
सीमा पर तनकर खड़ी फ़ौलाद सी।
मर्यादा का उदाहरण है तो
शीतल बयार भी।
आदिशक्ति के नौ रुपों का
दर्शन हैं नारी शक्तियाँ।
सच्चे मन से जब निहारेंगे
आदिशक्ति जगत जननी की
मनमोहक मूर्ति सी दिखती
हमारी नारी शक्तियाँ।
आदिशक्ति की जयजयकार के लिए
आधार भी बनती हैं
हमारी नारी शक्तियाँ।
हमारे अंर्तचक्षु को खोलने
काम भी करती हैं सदा
हमारी नारी शक्तियाँ।
उनकी जय जयकार
भला कब किया हमनें
फिर भी हमारे हित के
हर काम करती हैं सदा
हमारी नारी शक्तियाँ।
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