आलोक रंजन इंदौरवी - इन्दौर (मध्यप्रदेश)
प्रात बेला - कविता - आलोक कौशिक
मंगलवार, अप्रैल 13, 2021
लालिमा का अवतरण है,
रोशनी का आवरण है।
भोर आई सुखद बनकर,
सूर्य का यह संचरण है।
प्रकृति का आलस्य टूटा,
तमस भागा और रुठा।
हो गई धरती सुहानी,
विहसता है जग समूचा।
पंछियों का शोर गुंजन,
मधुरमय दिखता है उपवन।
रात्रि का विश्राम आया,
प्रात लाई स्फूर्ति तन मन।
कर्म के पथ का पुजारी,
आ गई बारी तुम्हारी।
छोड़ कर आसक्ती जागो,
राह तकती है तुम्हारी।
धैर्य से चलना हमेशा,
सत्य पर बढना हमेशा।
मंज़िलें तुम को मिलेंगी,
अग्रसर रहना हमेशा।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर