डाॅ. वाणी बरठाकुर "विभा" - तेजपुर (असम)
रंगीन बसंत - कविता - डाॅ. वाणी बरठाकुर "विभा"
मंगलवार, अप्रैल 20, 2021
अब चारों ओर
महक रहा है
आया रंगीन बसंत
बसंती टगर फूल
खुश्बू हवा के संग
गगन को चूम रहा
बरदैचिला बावली सी
उड़ कर
महकाती गई
बिखेरकर नव सुगंध
पतझड़ के बाद
डालियों पर
बसंत की हरियाली
गुलमोहर भी
खिलकर मुस्कुराने लगी
लेकर बैशाखी की
स्नेह भरी मादकता।
गा रही कोयल, चकवा भी
मधुर सरगम
कहीं ढोल की ढमढम
पेपा भी गुनगुना रहा
आतुर यौवन मन।
रंगीन अब ये धरा
सज रही दुल्हन सी
मेरी असमिया माँ
अब समय है
स्वागत नया साल का
रंगाली बिहु संग है
ताल ताल पर
नाचना और गाना।
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