डॉ. राम कुमार झा "निकुुुंज" - नई दिल्ली
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चलो लगाएँ वृक्ष हम - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
चलो लगाएँ वृक्ष हम - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सोमवार, मई 10, 2021
ख़ुद जीवन का रिपु मनुज, खड़े मौत आग़ाज़।
बिन मौसम छाई घटा, वायु प्रदूषित आज।।
भागमभागी ज़िंदगी, बढ़ते चाहत बोझ।
सड़क सिसकती ज़िंदगी, वाहन बढ़ते रोज़।।
चकाचौंध उद्यौगिकी, नभ में फैला धूम।
जले पराली खेत में, मौत प्रदूषण चूम।।
चहुँदिक् है फैला तिमिर, भेद मिटा निशि रैन।
नैन प्रदूषित जल रहा, सुप्त प्रशासन चैन।।
हृदय रोग अवसाद बन, दृष्टि दोष फैलाव।
बढ़ी चिकित्सा गेह में, रोगी भीड़ जमाव।।
गज़ब प्रदूषण कालिमा, कामगार बन मीत।
हों प्रदूषित बालपन, कर्मपथी निर्भीत।।
निर्माणक नवराष्ट्र का, बनें सबल नीरोग।
भूकम्पन प्लावन सलिल, शीतातप दुर्योग।।
स्वार्थ कपट मदमत्त हो, झूठ शलाका चित्त।
नफ़रत निंदा नित व्यसन, करे लूट की वृत्त।।
अन्तर्वेदित लालची, कटे नदी नित वृक्ष।
जल निकुंज सुषमा विरत, प्रकृति अरु अंतरिक्ष।।
प्राण वायु अत्यल्प भुवि, धूम फ़ैल आकाश।
ग्रसित सूर्य शशि लापता, मृत्यु करे उपहास।।
तज विवेक नित सोच को, भ्रष्ट प्रदूषक तन्त्र।
भोग विलासी सम्पदा, रच नेता षड्यंत्र।।
लक्ष लक्ष चल गाड़ियाँ, रात्रि दिवस विष छोड़।
हृदय घात अवसान पत्र, मनुज लगाता दौड़।।
कवि "निकुंज" अन्तर्व्यथित, ज़हरीला ले श्वाँस।
रोग शोक मद नित मना, ज़ख़्मी दिल्ली वास।।
चेतो, अब भी वक़्त है, नेतागिरि तज स्वार्थ।
कर उपाय विध्वंस विष, जीओ जग परमार्थ।।
चलें प्रदूषण हम मिटा, प्रजा संग सरकार।
वृक्षारोपण हम करें, स्वच्छ धरा आधार।।
स्वयं सजग जन जागरण, कर प्रदोष उपचार।
पुनः सजाएँ हम प्रकृति, जो जीवन आधार।।
कुदरत का अद्भुत सृजन, भू जलाग्नि नभ वात।
वृक्षारोपण हो धरा, जीवन नया प्रभात।।
संजय सम मानुष जहाँ, जाग्रत सुमति सुजान।
वृक्षारोपण स्वच्छता, कर जीवन दो दान।।
बचे प्रकृति पर्यावरण, वृक्षारोपण कार्य।
स्वच्छ चित्त सत्काम हो, मानवता अनिवार्य।।
चलो लगाएँ वृक्ष हम, हो जीवन कल्याण।
हरित भरित धरती पुनः, ऑक्सीजन निर्माण।।
सुरभित कुसमित हो प्रकृति, निर्मल हो नीलाभ।
वन पादप फिर हरितिमा, नव जीवन अरुणाभ।।
चलो बचाएँ ज़िंदगी, तरु रोपण अभियान।
बचें कोरोना प्रलय से, खिले फूल मुस्कान।।
पर्वत वन-पादप हरित, सरिता अविरल धार।
वृक्ष लगा फिर से प्रकृति, करें मुदित संसार।।
बनें स्वच्छ पर्यावरण, निर्मल हो परिवेश।
हो नीरोग जन देश का, सुखद शान्ति संदेश।।
बने मीत निज ज़िंदगी, गढ़ें चारु संसार।
सप्त सरित पावन धरा, प्रगति सिन्धु आचार।।
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