गुड़िया सिंह - भोजपुर, आरा (बिहार)
भूल करते रहे - कविता - गुड़िया सिंह
शुक्रवार, मई 07, 2021
ख़ुद से रहे अनजान,
औरो को समझने की,
भूल करते रहे,
सारी उम्र इसी में गुज़ार दी,
सभी ही तो काम ये,
फ़िजूल करते रहे।
ना बाँटी किसी को खुशियाँ,
सिर्फ़ अपनी परवाह की,
दूसरों के हक़ का भी छीन कर,
सब कुछ पाने की चाह की।
ना दिया किसी को मान कभी,
सिर्फ़ अपना सम्मान ढूँढा,
झाँका ना एक बार कभी,
अपने गिरेबान में,
दुसरो में ईमान ढूँढा।
ना समझी तक़लीफ़ें किसी की,
ना दुःख में किसी का,
साथ ही निभाया,
जाने किस भ्रम में पड़कर
स्वयं को इंसान बताया,
ना रखी लाज इंसानियत की,
फिर भी किस बात का,
ग़ुरूर करते रहे,
ख़ुद से रहे अनजान,
औरो को समझने की,
भूल करते रहे।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर