राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)
पंखाचल - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
सोमवार, मई 10, 2021
दबा चोंचभर मिटट्टी लाती,
दीवारों में वह चिपकाती।
बच्चों के आवास के लिए,
एक पक्का घोंसला बनाती।।
घूम-घूम कर घर-घर दिन भर,
चुन-चुन कर वह दाना लाती।
बारी-बारी से बच्चों को,
प्यार से वह भोजन है कराती।।
चोंच में भर-भर पानी लाती,
बच्चों की वह प्यास बुझाती।
चों-चों, चों-चों गीत सुनाकर,
पंखाचल में उन्हें सुलाती।।
अपने संग-संग चलना, उड़ना,
और बोलना उन्हें सिखाती।
पीठ में रखती घुमा-घुमा कर,
जग की जग-मग उन्हें दिखाती।।
फुर्र-फुर्र उड़ आती-जाती,
ताल, थाल, जल रोज़ नहाती।
कभी-कभी बच्चों को संग ले,
जाकर उनको भी नहलाती।।
माँ है वही, बाप वही है,
चूँ-चूँ कर उनको समझाती।
उन्हें खिलाती, तब ख़ुद खाती,
वात्सल्य उन पर है लुटाती।।
कभी कोई कष्ट, समस्या आती,
पंखाचल में उन्हें छुपाती।
लड़-लड़ मर जाती लेकिन,
बच्चों की वह जान बचाती।।
चोंच फेर सर पर सहलाती,
चों-चों गा-गा, मन बहलाती।
जननी, पालक, शिक्षक, रक्षक,
तब तो वह माँ है कहलाती।।
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