प्रवीणा - सहरसा (बिहार)
ख़ुद-ग़र्ज़ी का लिबास - ग़ज़ल - प्रवीणा
गुरुवार, जून 10, 2021
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
तक़ती : 122 122 122 12
यूँ ख़ुद को ना इतना सताया करो।
खुलकर भी कभी मुस्कुराया करो।।
माना ये आज़माइशों का दौर है,
पर ख़ुद को ना यूँ आज़माया करो।
बरसती है आँखें बरस जाने दो,
आँसुओं को ना बंदी बनाया करो।
होती है इक मुद्दत वायदों की भी,
ना दिल को दुखा कर निभाया करो।
रूठ जाएँगी हसरतें ढ़लती उम्र के संग,
इन हसरतों से ना नज़रें चुराया करो।
जीना ख़ुद के लिए भी ज़रूरी ही है,
मार ख़ुशियों को ना वक़्त ज़ाया करो।
है ग़लत माना ये ख़ुद-ग़र्ज़ी का लिबास,
मगर इसे भी कभी पहन जाया करो।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर