आलोकेश्वर चबडाल - दिबियापुर (उत्तर प्रदेश)
लौट चला है सूरज - गीत - आलोकेश्वर चबडाल
सोमवार, जून 14, 2021
चल रे घर चल नाविक अब तो
लौट चला है सूरज!
आशाओं की किरणें लेकर
निकला दूर गगन से,
दशों दिशाओं को चमकाया
उसने सधी लगन से।
तू भी निकला आँखों में भर
जीवन की मधु आशा,
तू भी भटका लहर लहर पर
दिन भर भूखा प्यासा।
पाना क्या था क्या ना पाना
खोज ढला है सूरज,
चल रे घर चल नाविक अब तो
लौट चला है सूरज!
आँगन में दो आँखें पागल
दीपक होकर बलतीं,
आहट आहट बेचैनी है
परछाईं तक छलतीं।
पीपल पत्तों सा धड़के है
कोमल मनवा पापी,
ये मत पूछो माला शुभ की
कैसे कैसे जापी।
उस आँचल के गीलेपन को
सोच गला है सूरज,
चल रे घर चल नाविक अब तो
लौट चला है सूरज!
जिसने भी दरवाजा लाँघा
जिसने थामा रस्ता,
उसकी पलकों में एक सपना
क़ीमत का या सस्ता।
मंज़िल पानी हो तो पग को
चलना तो पड़ता है,
मीठी मीठी एक अगन में
जलना तो पड़ता है।
एक चाँद की अभिलाषा में
रोज़ जला है सूरज,
चल रे घर चल नाविक अब तो
लौट चला है सूरज!
पूरी किसकी साध हुई है
पूरी किसकी आशा,
पाल रखा है दो पलकों ने
बरसों बरस बताशा।
आज नही तो कल पाएँगे
अपने मन का मोती,
आशा है ये खोकर के भी
कही नही है खोती।
भेंट साँझ को अरुण भोर की
ओर चला है सूरज,
चल रे घर चल नाविक अब तो
लौट चला है सूरज!
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर