राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)
दिन वही है - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
गुरुवार, जून 03, 2021
मग्न कोई कहीं जन्म दिन के जश्न में है,
कहीं कोइ रंज निमग्न, मरन दिन के।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ है।।
काँधा दे रहा कहीं कोई डोली बहिन की,
दे रहा काँधा कोई अर्थी भ्रात की।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ़ है।।
कहीं कड़वाचौथ-वृत पति का इंतज़ार,
कहीं पति-शव लिपट रोदन, चीत्कार।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ है।।
मौज-मस्ती में कोई हँस रहा होंठ भर,
रो रहा कहीं कोई, नयन अश्रु भर-भर।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ है।।
कहीं काट रहा है कोई किसी को,
कहीं कोई कट रहा है किसी से।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ है।।
कहीं जश्न जीत-जंग अट्टहास है,
कहीं मात-मातम, दिल है उदास।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ है।।
कहीं लू-तपिश, कहीं लहर-शीत ठिठुरन,
कहीं वर्षा-बहाना, कहीं तूफाँ तवाई।।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ़ है।।
सोया सोने के बिछौने में कोई ठाट में,
माँगता फिर रहा कहीं कोई हाट में।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख बाढ़ है।।
हरियाली बसन्त कहीं, कहीं वीरान पतझड़,
कहीं चमत्कार पूनम, कहीं अमावस अंधकार।
दिन वही है, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख बाढ़ है।।
कहीं कोई रंग-रस होली-ठिठोली,
कहीं जंग, परस्पर चल रही गोली-गोली।
दिन वही, देन है बस भिन्न-भिन्न,
सुख-बारिश कहीं, कहीं दुख-बाढ़ है।।
कहीं लाज द्रौपदी की दुशासन से बचाई,
कहीं निर्दोष सीता है वन में छुडा़ई।
प्रभु! कैसी ये लीला है तूने रचाई,
जो अब तक समझ में मेरे तो न आई।।
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