बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)
प्रतीक्षा - कविता - बृज उमराव
शुक्रवार, जून 18, 2021
आस लगाए हम खड़े,
हे साजन तुम कब आओगे?
दिन गिन मेरी उँगली घिस गई,
कब तक यूँ तड़पाओगे?
तन तिनके के माफ़िक़ हो गया,
आँखों में काले घेरे।
चिट्ठी पाती भी न पाती,
क्या तुम भूले सतफेरे।।
दिवस बीतता दिनचर्या में,
रात न काटे कटती।
काश पास तुम मेरे होते,
क्यों मै तन्हा रहती।।
सूरज चाँद समय पर आते,
तुम न समय पे आए।
कली बनी फिर फूल खिल गए,
अब वह भी मुरझाए।।
उल्लासित हैं पास पड़ोसी,
उनके अपने घर आए।
कहाँ रह गये प्रिय तुम मेरे,
मन मेरा घबराए।।
अन्दर जाऊँ बाहर आऊँ,
देखूँ राह तुम्हारी।
तुम तो निकले इतने निष्ठुर,
भूले याद हमारी।।
जब तुमने मुझको देखा था,
दिया था पहला फूल।
क्या मुझको था ऐसा मालूम,
बनेगा हिय का शूल।।
मुरझाई मै भी वैसे ही,
जैसे वह मुरझाया फूल।
ऐसा लगता की थी मैंने,
पहली भारी भूल।।
आ जाओ हे प्रियतम मेरे,
जल्दी दरश दिखाओ।
दूर करो मन का अंधियारा,
दीपक एक जलाओ।।
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