अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
तुम बिन मैं, मैं बिन तुम - कविता - अंकुर सिंह
सोमवार, जून 14, 2021
तुम बिन मैं, मैं बिन तुम,
दोनों है सदियों से अधूरे।
जैसे दिल बिन धड़कन,
वैसे तुम बिन हम न पूरे।।
नीर बिन ना नदी होती,
समीर बिन ना ज़िंदगी।
जीवन के जीवन-पथ पर,
खलती तेरी ग़ैरमौजूदगी।।
तुम बिन मैं, मैं बिन तुम,
है दोनों सदियों से अधूरे।।
देंगे हर सुख-दुख में साथ,
ना छोड़ेंगे कभी ये हाथ।
जब तुम हम, और हम तुम होंगे,
तब होगी सिर्फ़ प्यार की बात।।
हे प्राण प्रियें ज़रा तुम कह दो,
तुम बिन मैं और मैं बिन तुम,
क्या एक दूजे के बिना रह लेंगे?
पड़े जीवन पथ पर यदि अंगारे,
हाथ थाम उस पर हम चल लेंगे।।
सनम अगर तुम दो मुझे इजाज़त,
दिल की बात तुमसे आज कह दूँ।
भूल सभी बंधनों को मैं आज,
तुम्हे अपनी बाँहों में भर लूँ।।
तुम बिन मैं, मैं बिन तुम,
दोनों है सदियों से अधूरे।
चाह है अब उस मिलन की,
जिसमें हो हम दोनो पूरे।।
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