डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली
सहनशीलता के संग ज़मीर का जंग - आलेख - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सोमवार, जुलाई 05, 2021
सहनशीलता के संग ज़मीर का जंग सदैव ही मानवजाति के पुरुषार्थ, संयम, धैर्य, साहस, आत्मबल और आत्मविश्वास की परीक्षा मानी जाती रही है। जीवन में कर्तव्य पथ पर रहते हुए मनुष्य को अनेक, बाधाओं, कठिनाईयों, संघर्षों, उपहासों, निन्दा और अपनों के द्वारा प्रदत्त अपमानों, यातनाओं, ज़ख़्मों, सितमों और दुःखों को सहना पड़ता है। लोंगों के धैर्य और विश्वास डगमगाने लगते हैं। वे अपने लक्ष्य पथ से डिगने लगते हैं, उनके उत्साह, साहस और आत्मबल कमज़ोर पड़ने लगते हैं।
हतोत्साहित और नित आनेवाले विघ्नों और अपमानों को देख अधिकतर लोग असहिष्णु होकर पथभ्रष्ट और प्रतीकार लेने हेतु ग़लत राह को अपना लेते हैं। इसी समय सत्यनिष्ठ संकल्पित कर्मवीर की पहचान होती है जो ऐसी परिस्थिति में अपनी सहनशीलता के गुण को न तजे और अंत में विजयी भी वही होता है। उदाहरणार्थ राजा हरिश्चन्द्र, राजा नल, सत्यवीर, राजा शिबि, राम का कैकेयी द्वारा राजविरत और प्रदत्त वनवास, माँ जानकी की बार बार अग्नि परीक्षा और चरित्र पर लाँछना , वन त्याग, भरत की भातृभक्ति, लक्ष्मण पत्नी उर्मिला का राजसुख त्याग, पांडवों का द्यूत क्रीडा में छल से हार और द्रौपदी का चीरहरण, नचिकेता, सावित्री, सती अनुसूया, द्रौपदी, भगवान् कृष्ण का शिशुपाल, जरासंध और दुर्योधन द्वारा अनवरत अपमान, यादवों का आँखों के समझ परस्पर विनाश, सम्राट् अशोक का तिरस्कार, चाणक्य का घोर अपमान, महादानी कर्ण और राजा भोज की दान परीक्षा आदि अनेकों उदाहरण मानवजाति के स्वर्णिम इतिहास में सहनशीलता और स्वाभिमान या ज़मीर की रक्षा के प्रमाण हैं।
उपर्युक्त समागत परिस्थितियों में प्रतिकूल प्रकृति का होकर मनुष्य असहनशील हो जाता है। कभी कभी वह अपने ज़मीर को भी गिरवी रख विपरीत परिस्थिति से समझौता कर लेता है और अपने व्यक्तित्व के मूल्यवान् अर्जित मानवीय और नैतिकअस्तित्व को सदा के लिए खो देता है। अतः सदैव वही मनुष्य जीवन संघर्षी ध्येय पथ पर सफल होता है जो अपनी बुद्धि, विवेक का उपयोग कर विपरीत परिस्थितियों में भी सहनशीलता के दुरूह जंग में और ज़मीरियत को बचा लेता है।
वैसा व्यक्ति विपत्ति में संयम, धैर्य, उन्नति में क्षमाशील, लोगों के बीच दक्ष प्रखर वक्ता, युद्ध के समय पराक्रमी, ख्याति पाने पर और अधिक अभिरुचि रखने वाला और कठिन बुरे समय में शास्त्र पुराणों, सत्संगादि गुणों से युक्त मर्यादित आचार विचार वाला होता है। वह अनेक कठिनाईयों और अवसाद विघ्नों को सहकर भी अपने स्वाभिमान या ज़मीर को नहीं छोड़ता क्योंकि ज़मीर खो जाने का मतलब उसके जीवन का सर्वस्व लूट जाना होता है।
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