अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)
वक़्त बहुत ही शर्मिंदा है - ग़ज़ल - अविनाश ब्यौहार
शुक्रवार, अगस्त 13, 2021
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
तक़ती: 22 22 22 22
वक़्त बहुत ही शर्मिंदा है,
आतंक अभी भी ज़िंदा है।
फूल बहुत कोमल होता है,
जैसे अब खार दरिंदा है।
मैने जन गण मन से पूँछा,
वो भारत का बाशिंदा है।
महलों से अच्छे हैं कोटर,
करता आराम परिंदा है।
लाख टके की बात करी औ,
उनकी हर बात चुनिंदा है।
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