सुशील कुमार - फतेहपुर, बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)
बिन साजन, सावन की रातें - गीत - सुशील कुमार
सोमवार, अगस्त 16, 2021
सावन की बरसातें आईं कागा फिर से घूम,
साजन मेरे कब आएँगे पूछे दिल मासूम।
वैसे तो विश्वास मुझे वो भी होंगे बेचैन,
न कटती है मेरी अब रैन - 2
जाड़ा बीता ठिठुर ठिठुर के गरमी जैसे तैसे,
छप्पर टपके रात में कागा बरखा बीते कैसे।
एक साल शादी के हो गए मंगनी भी करवा लें,
जा कागा तू उन्हें बता दे मुझको अब बुलावा लें।
शादी से न मुख को देखा तरस रहे हैं नैन...
रिमझिम पानी की बूंदें है तन में आग लगाती,
मेरे सोए ख़्वाबों में फिर हलचल सी मच जाती।
रोज़ उलहना देती सखियाँ तू तो है बड़ी भोली,
जो मुझको ले करके जाए कब आएगी डोली।
मन मेरा होता है आहत सुनकर ऐसे बैन...
सपने में वो आते मेरे विस्तर पर सो जाऊँ,
तकिए को मैं समझ के साजन उसको गले लगाऊँ।
चुंबन करते ही करते बैरिन निंदिया टूटे,
आँख खुले साजन न पाऊँ मेरी सिसकियाँ छूटे।
जा जा कागा उन्हें बता दे तेरी सजनी बेचैन...
न कटती है मेरी अब रैन - 2
सावन की बरसातें आईं कागा फिर से घूम,
साजन मेरे कब आएँगे पूछे दिल मासूम।
वैसे तो विश्वास मुझे वो भी होंगे बेचैन,
न कटती है मेरी अब रैन - 2
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