डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली
मंज़िल पाना है - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
गुरुवार, अगस्त 12, 2021
बढ़ो सदा जीवन के पथ पर,
हमें सुपथ मंज़िल पाना है।
सदाचार संस्कार लेप मन,
सत्य रथी रथ पर चढ़ना है।
त्याग तपोबल न्याय निष्ठ बन,
आगत विघ्नों को सहना है।
धारदार सरिता में बहकर,
गिरि शिखरों पर जय गढ़ना है।
होंगे पथ अपनों से घायल,
ज़ख़्मों को सह ग़म पीना है।
पथ प्रेरक हर पथ जो निन्दक,
निर्मल मंज़िल नित गढ़ना है।
सदा चुनौती जीवन लघुतर,
मंज़िल सोपानें चढ़ना है।
प्रीति रीति सद्नीति पथिक बन,
भारत मंज़िल ख़ुद बनना है।
रख धीरज साहस संबल मन,
रख संयम मंज़िल रचना है।
विजय ध्वजा लहराए अम्बर,
संघर्ष अटल पथ नित रहना है।
राष्ट्र प्रगति निज उन्नति मंज़िल,
धवल कीर्ति स्वर्णिम गढ़ना है।
विश्वास स्वयं नित स्वाभिमान,
आत्मनिर्भर बने रहना है।
सुनें सभी को ख़ुद सोचें मन,
मंज़िल ख़ुद निर्णय करना है।
सहनशील संवेदन हृदतल,
नवल सुयश पौरुष गढ़ना है।
परमार्थ हृदय हो भाव सतत,
धर्मार्थ राष्ट्र मंज़िल रचना है।
बन ख़ुद सुपात्र गणतंत्र वतन,
मंज़िल जन सेवा बनना है।
मानवता अनमोल धरोहर,
मददगार जीवन बनना है।
शिक्षित दीक्षित नव शोध नवल,
जन मुस्कान ख़ुशी लाना है।
दया धर्म करुणा ममता हिय,
क्षमाशील जीवन बनना है।
उड़े तिरंगा ध्वज नभमंडल,
नार्यशक्ति संबल करना है।
चलें ध्येय आस्तिकता ले हिय,
विनत समादर नित करना है।
नीरज सम पंकिल हो सुरभित,
विजय गीत मंजिल पाना है।
आज़ादी बलिदानी भारत,
दान धरोहर मिल रक्षा है।
जो सीमा रक्षक निशिवासर,
बढ़ा मनोबल जय करना है।
बन यथार्थ स्वप्नों का मंज़िल,
कर्मवीर भारत बनना है।
राष्ट्रगान गुंजित हो जीवन,
समरस बन मंज़िल पाना है।
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