केशव झा - भागलपुर (बिहार)
प्रोत्साहन - कविता - केशव झा
गुरुवार, अगस्त 05, 2021
क़िस्मत की लकीरों में
हज़ारों परछाइयाँ दिखाई देंगी।
किस-किस तरफ़ जाऊँ
यह बात सुनाई देंगी।
गर हो आँखों में आँसू
तारे भी धुँधली दिखाई देंगी।।
कठिनाइयाँ है जीवन में
चलना इसी डगर पे।
भूल जाए रास्ते तो
आगे खाई दिखाई देंगी।
गर हो आँखों में...
तुमने, देखा है चींटी को
चढती है कि फिसलती है।
उसकी असफलता के आगे
सफलता दिखाई देंगी।
गर हो आँखों में...
पहाड़ों से गिरते झरने
राहे ख़ुद बना लेती है।
पथ कितनी भी हो कँटीली
धार बना देंगी।
गर हो आँखों में...
तुम क्या सोच रहे हो
यह जीवन आसान नहीं है।
जगाओ उल्लास अपने मन में
जीवन को सार बना देंगी।
गर हो आँखों में...
इस तरह क्यूँ लटके हो डाली में
जीवन से डर डर के।
क्या तुमने कभी सोचा है,
गिरेंगे ज़मीन पर तो
मालिन हार बना देंगी।
गर हो आँखों में...
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