सरिता श्रीवास्तव 'श्री' - धौलपुर (राजस्थान)
गुरु महिमा - कविता - सरिता श्रीवास्तव 'श्री'
रविवार, सितंबर 05, 2021
गुरु ज्ञान की ज्योति अनोखी, अंतस फैला तिमिर मिटाए।
अनगढ़ मूढ़ शून्य शिष्य को, सघन शून्य महत्व सिखाए।।
दीपक जैसा जलता जाए, शिष्य अंतर प्रकाशित कर दे।
जीवन मर्म सिखलाए गुरू, भव सागर आसान बनाए।।
कितनी भी तारीफ़ करूँ मैं, सूरज दिया दिखाने जैसा।
गुरु स्थान ईश्वर से बढ़कर, गुरु महिमा ये पाठ पढ़ाए।।
प्रथम गुरु कहलाए माता, बच्चे को संस्कारित करती।
पाँच बर्ष घर शिक्षा पाए, देवत्व मातृत्व युग्म हो जाए।।
परमेश्वर का पुंज माता, प्रेम त्याग उसको सिखलाती।
छः वर्ष की आयु पूर्ण हो, गुरु सानिध्य प्रसाद पाए।।
कितनी गहरी थाह समुद्र की, कितने रत्न समाए भीतर।
सत्य की झाँकी अंतर्मन में, सूर्य तेज़ समझ में आए।।
क्या अवनि है क्या है अंबर, राम की महिमा कृष्ण गीता।
विश्व चराचर पंच तत्व 'श्री', गुरु रूप में सब ही समाए।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर