दीपक राही - जम्मू कश्मीर
कश्मीर - कविता - दीपक राही
गुरुवार, सितंबर 09, 2021
कश्मीर तुम्हें यूँ ही नहीं कहते,
कुदरत का नायाब यूँ नहीं कहते।
तुम ही तो हर मौसम का रंग दिखलाते,
पल-पल बदलते अफ़सानों को महकाते,
बाग़-बग़ीचे तुमसे ही खिल जाते।
कश्मीर तुम्हें यूँ ही नहीं कहते,
कुदरत का नायाब यूँ नहीं कहते।
तेरे लिए सब मर मिट जाते,
इसीलिए तो सर का ताज हैं कहते,
तुम ही धरती का स्वर्ग कहलाते,
बर्फ़ की चादर ओढ़ कर,
सैलानियों का मन हो बहलाते।
कश्मीर तुम्हें यूँ ही नहीं कहते,
कुदरत का नायाब यूँ नहीं कहते।
पल पल बदलता हैं मिज़ाज तेरा,
मेहमान-नवाज़ी का प्यार तेरा,
तेरे आँचल में कुदरती एहसास तेरा,
प्यार मोहब्बत का पैग़ाम तेरा,
नफ़रत की सियासत से,
होता शिकार तेरा।
कश्मीर तुम्हें यूँ ही नहीं कहते,
कुदरत का नायाब यूँ नहीं कहते।
चार चिनार और शिकारे की सवारी,
लगती सबको बहुत न्यारी,
इसीलिए पुरे भारतवर्ष के लोग,
डल झील के लेते न्यारे।
कश्मीर तुम्हें यूँ ही नहीं कहते,
कुदरत का नायाब यूँ नहीं कहते।
तुझ पर गिरा यह रंग लाल कैसा,
यह आँसूओं का सैलाब कैसा,
गहरे ज़ख़्मों का नकाब कैसा,
चीख़ता चिल्लाता यह स्वर्ग कैसा,
आज़ादी का फैला दुआ कैसा है,
ख़ुशहाल वादी में क़हर कैसा,
धरती के स्वर्ग यह खिलवाड़ कैसा।
कुदरत का यह नायाब कैसा,
कुदरत का यह नायाब कैसा।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर