रतन कुमार अगरवाला - गुवाहाटी (असम)
विश्वकर्मा - कविता - रतन कुमार अगरवाला
शुक्रवार, सितंबर 17, 2021
जग का किया निर्माण जिन्होंने,
करता हूँ मैं आज उन्हे प्रणाम।
दुःख संसार के हर लिए जिन्होंने,
सुखी वसुंधरा का किया निर्माण।
विश्व निर्माता थे बाबा विश्वकर्मा,
बनाए उन्होंने नदी और पहाड़।
हवा बनाई, बनाए सूरज, चाँद, सितारे,
पहले तो था यह सब एक उजाड़।
पेड़ दिए, दिए डालो पर फल फूल,
पंछी दिए और दिए उड़ने को पंख।
साज दिए, और दिए बजाने मृदंग,
संतो को भी दिए गूँजाने को शंख।
पूरी धरा थी सिर्फ़ बेजान मिट्टी,
धरती को सींचकर भर दिए प्राण।
जीवन का स्पंदन दिया धरा को,
जो थी पहले बिल्कुल निष्प्राण।
रचना करने की विधा दे दी,
मनुष्य को दी एक अलग पहचान।
विश्वकर्मा का दूत बनकर,
मनुष्य कर रहा आज निर्माण।
ब्रह्माण्ड का यह अद्भुत अभियंता,
पूरे संसार का यह कर्ता धर्ता।
कैसे गढ़ दी संसार की रचना,
पूरी सृष्टि का यह निर्माणकर्ता।
कुएँ बनाए, बना दी नदियाँ,
नदियों से बनता विशाल समंदर।
सारी गंदगियों को करता समाहित,
शिव का स्वरूप हो जैसे समंदर।
ब्रह्माण्ड का था पहला मज़दूर,
लिया संसार को गढ़ने का प्रण।
श्रम करके बहाया अकूत पसीना,
पसीने से बना जल का कण-कण।
प्रजापति से मिली यह ज़िम्मेदारी,
विश्वकर्मा ने बख़ूबी निभा दी।
दिन में दिया सूर्य का प्रकाश,
रात को अँधेरे की चादर बिछा दी।
ढक दिया धरा का नग्न शरीर,
पहना दिए सभ्यता के आवरण।
इंसान को दी सोचने की शक्ति,
और दिए व्यवहार और आचरण।
इंसान ने चुरा ली इनकी विद्या,
करने लगा धरती पर निर्माण।
धरती को कर रहा फिर निर्वस्त्र,
नष्ट कर रहा विश्वकर्मा का जहान।
धर्म के नाम पर रच दिए प्रपंच,
विश्वकर्मा को दिया मंदिर में स्थान।
ब्रह्माण्ड की रचना करने वाले की,
मूर्ति का ही कर दिया निर्माण।
कराह रही आज पूरी मानवता,
कराह रहा बाबा विश्वकर्मा।
तड़प रही आज पूरी धरती,
कहाँ गया मेरा बाबा विश्वकर्मा?
कैसा था यह सुनियोजित षडयंत्र,
एक निर्माणकर्ता का छीना मान।
ब्रह्माण्ड का कर रहे हैं विनाश,
विश्वकर्मा का कर रहे अपमान।
पूजा के प्रपंच से न होगी भक्ति,
पुनः निर्माण से होगी सही अर्चना।
लौटा दो जग को इसका स्वरूप,
करो एक सुंदर जग की संरचना।
विश्वकर्मा पूजा का दिन है आया,
कर रहा संसार उनको नमन।
पुनः स्थापित करेंगे उनका ब्रह्माण्ड,
आओ लें आज यही एक प्रण।
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