कार्तिकेय शुक्ल - गोपालगंज (बिहार)
तुम्हें ग़ुरूर है किस पर - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
शुक्रवार, अक्टूबर 08, 2021
तुम्हें ग़ुरूर है किस पर
अपने यौवन पर?
ढल जाएगा यौवन एक दिन।
तुम इतराते हो किस पर
अपने ज़ुल्फ़ों पर?
पक जाएँगी ज़ुल्फ़ें एक दिन।
तुम्हें नाज़ है किस पर
अपने गीतों पर?
भूल जाओगी एक दिन।
लेकिन ये एक दिन
कभी नहीं ढलेगा,
कभी नहीं पकेगा,
कभी नहीं भूलेगा,
गर तुम बची रही
और बचाए रखी
अपनी सादगी।
ज़िंदा रहोगी तब तक
कि जब तक
ज़िंदा रहेगी धरती।
बने रहोगी तब तक
कि जब तक
बने रहेंगी नदियाँ।
खिलते रहोगी तब तक
कि जब तक
खेलते रहेंगे बच्चे।
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