अनिकेत सागर - नाशिक (महाराष्ट्र)
बरहम हुई हैं नज़रें मुझसे जो मेहरबाँ की - ग़ज़ल - अनिकेत सागर
सोमवार, नवंबर 08, 2021
अरकान : मफ़ऊलु फ़ाइलातुन मफ़ऊलु फ़ाइलातुन
तक़ती : 221 2122 221 2122
बरहम हुई हैं नज़रें मुझसे जो मेहरबाँ की,
हालत ख़राब कर दी है मेरे आशियाँ की।
वो माहताब इक दिन बेशक चमक उठेगा,
फिर रौशनी खिलेगी ज़र्रों में कहकशाँ की
क्या देखकर न जानें लगने लगा उसे डर,
नींदें उड़ी हुई हैं क्यों आज पासबाँ की।
करते नशा जो बच्चें बढ़ते नहीं है आगे,
ऐसे में ख़त्म होगी पीढ़ी ये नौजवाँ की।
पहचानता मुझे दिल के राज़ जानता हो,
मुझको तलाश है इक ऐसे ही राज़दाँ की।
मुझको संभाले रक्खा बचपन से फ़ूल जैसा,
आतीं मुझे अभी तक है याद बाग़बाँ की।
आनंद हौसलों की सागर लहर उठा दे,
उत्साह से ज़मीं भी महकेगी दो-जहाँ की।
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