डॉ॰ राजेश्वरी एम॰ वी॰ - बेंगलुरू (कर्नाटक)
शिक्षा के दौरान - कविता - डॉ॰ राजेश्वरी एम॰ वी॰
सोमवार, नवंबर 29, 2021
आँखों का तारा, नयनों का सितारा,
सरिता-समुंदर पार, मेरी सन्तान,
विहग, विदेश शिक्षा के दौरान।
दीक्षा ली अभिभावकों से,
उपदेश गुरूजनों से,
ली शुभेच्छा बंधु-मित्रों से,
कृपा की पोटली भगवान से,
फिर, निकल पड़ी मेरी सन्तान,
विहग, विदेश शिक्षा के दौरान।
आसमान से तारे तोड़ने
अरमानों के महल सजाने,
जनहित का जाप करते,
जगहित का जुनून भरते,
तब, निकल पड़ी मेरी सन्तान,
विहग, विदेश शिक्षा के दौरान।
जान से प्यारा, जिगर का टुकड़ा,
बन के सहारा, ज्ञान का तगड़ा,
मशाल थामें, ज्योत जलाने,
दृढ़संकल्प लिए, मंज़िल मिलने,
हाँ, निकल पड़ी मेरी सन्तान,
विहार, विदेश शिक्षा के दौरान।
अडिग डग, अमर अंदाज़,
व्रत धारी, पथ बाज़ी,
लक्ष्य साधने, रहस्य भेदने,
उड़ान भरे, भावी रचने,
निष्ठुर, निकल पड़ी मेरी सन्तान,
विहग, विदेश शिक्षा के दौरान।
मूक-कूक भरती माता,
ताक-झाँक करता पिता,
नीरा घोंसला, भिनभिनाता,
विरह वियोग तमतमाता,
छोड़, निकल पड़ी मेरी सन्तान,
विहग, विदेश शिक्षा के दौरान।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर