समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)
आदत ये पुरानी है कम-ज़र्फ़ ज़माने की - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त
सोमवार, दिसंबर 20, 2021
अरकान : मफ़ऊलु मुफ़ाईलुन मफ़ऊलु मुफ़ाईलुन
तक़ती : 221 1222 221 1222
आदत ये पुरानी है कम-ज़र्फ़ ज़माने की,
करता है सदा कोशिश उठते को गिराने की।
डरते हैं उतरने से चढ़ते हुए दरिया में,
करते हैं वही बातें दरिया को सुखाने की।
सच बात छुपाने से छुपती है कहाँ प्यारे,
कोशिश फ़िज़ूल है सब बातों को बनाने की।
अबला नहीं हो सबला क्या कुछ न कर सकोगी,
छोड़ो भी अब ये आदत आँसू को बहाने की।
उलझोगे अगर इनमें उलझे ही रहोगे तुम,
सुन लो औ गुज़र जाओ बातें हैं ज़माने की।
इक तीर से ये दो-दो करता है शिकार अक्सर,
ये अहले सियासत की ख़ूबी है निशाने की।
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