सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)
मैं धरा हूँ - कविता - सीमा वर्णिका
शुक्रवार, दिसंबर 10, 2021
बाहों में सृष्टि घिरी
सरित सिंधु व गिरि
शेषनाग शीर्ष धरी
मैं धरा हूँ।
सौरमंडल का ग्रह
वारि भू मय विग्रह
द्वय ध्रुव हिम संग्रह
मैं धरा हूँ।
खेत वन व उद्यान में
निर्झर व जलवान में
तृण विरवा विवान में
मैं धरा हूँ।
जीव जन्तु व प्राणी
विविध भाषा वाणी
भिन्न ऋतु कल्याणी
मैं धरा हूँ।
दृश भूगर्भीय साक्ष्य
जैव विविधता नाट्य
प्रजातियों का प्राप्य
मैं धरा हूँ।
चाँद व सूरज निहारे
नयनों के समक्ष तारे
ग्रह उपग्रह संग सारे
मैं धरा हूँ।
विकट तपिश की मार
ज्वार भाटा का प्रहार
बारिश हो मूसलाधार
मैं धरा हूँ।
संत ऋषि व मुनियों की
श्रमी कृषक गुनियों की
बाल वृद्ध नर नारियों की
मैं धरा हूँ।।
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