मयंक द्विवेदी - गलियाकोट, डुंगरपुर (राजस्थान)
संकल्प - कविता - मयंक द्विवेदी
शनिवार, जनवरी 01, 2022
नव वर्ष के प्रांगण में
संकल्पों के बंधन में
बंधनें को क्या तैयार हो?
लड़ने को क्या तैयार हो?
कोरी-कोरी बातों से,
थोथे-थोथे वादों से,
चिथड़े-चिथड़े अर्न्तमन,
उखड़ा-उखड़ा है जीवन,
जीवन में, क्या कुछ कर पाए?
पुरे वादे क्यूँ ना कर पाए?
जीवन नहीं यह मरण है,
जीते जी ही तर्पण है।
संकल्प हो तो हनुमंत जैसा
पर्वत उठा लाए, था जैसा।
दृढ प्रतिज्ञ हो भीष्म जैसा
मृत्यु को भी बाँधा ऐसा।
भागीरथ सा प्रयास कर,
पाताल से भी खींच कर,
नीर का प्रवाह कर,
नीर का प्रवाह कर।
चाह नहीं वहाँ राह नहीं,
अभी नहीं तो कभी नहीं,
दुश्मन के भी काँपे सीने
हार को भी आए पसीने,
मान ले यह जान ले,
तु जो मन में ठान ले।
औक़ात को दिखा औक़ात
सिंह की तरह दहाड़ कर,
लक्ष्य को साधकर,
विजय झण्डे गाड़ दे।
नव वर्ष के प्रांगण में
नव संकल्प धार ले,
नव संकल्प धार ले।
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