प्रवीणा - सहरसा (बिहार)
बना के मशकूक मेरे वजूद मेरे किरदार को - ग़ज़ल - प्रवीणा
सोमवार, जनवरी 31, 2022
अरकान : मुफ़ाईलुन फ़ाइलातुन मुस्तफ़इलुन फ़अल
तक़ती : 1222 2122 2212 12
बना के मशकूक मेरे वजूद मेरे किरदार को,
ना जाने वो कमबख़्त क्यूँ मुझसे दूर हो गया।
उतारकर मेरी रगों में अपनी मुहब्बत का ज़हर,
मिस्टर इंडिया सा बनकर वो काफ़ूर हो गया।
लगा कौन सा ख़ज़ाना ना जाने हाथ उसके,
कि देखते ही देखते बशर वो मखमूर हो गया।
अनगिनत तरकीबें लगाता रहा दूर होने की,
जाने क्यूँ इस क़दर वो इतना मजबूर हो गया।
लगीं हज़ारों तोहमतें जिस शख़्स की वज़ह से,
वो हर किसी की निगाहों में बेकसूर हो गया।
है नज़रों में मेरी वो अलबत्ता एक मुजरिम,
मगर मेरे रक़ीब की नज़रों में मशकूर हो गया।
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