बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)
संगिनी - कविता - बृज उमराव
सोमवार, जनवरी 31, 2022
संगिनी तुम्हारी यादों में,
यूँ जीवन ऐसे बीत रहा।
ज्यों माली उजड़ी बगिया को,
दे दे कर पानी सींच रहा।।
ग़म के अँधियारे घेरे,
संघर्ष शील जीवन बीता।
गिरे उठे उठकर दौड़े,
संग न छूटा परिणीता।।
बेतार हुआ संचार सदा,
भावनाओं का ज्वार बहा।
सीमाओं ने रख बाँधा,
जब भी ज़्यादा उत्साह चढ़ा।।
चाँद चमकता है नभ में,
तारों को अपने संग लिए।
संदेश सुनाता जीवन का,
थोड़े कम ज़्यादा रंग लिए।।
हमसफ़र तुम्हीं हो जीवन की,
राहों की डोर बंधी तुमसे।
अन्तर्मन में तुम ही छाई,
प्रथम मिलन हुआ जब से।।
कुछ बेहतर की आस लिए,
मैं भटक रहा वीरानों में।
मीठी-मीठी बातें करके,
घाव दिए कुछ अपनों ने।।
कर्म योग का ज्ञान मिला,
पठन किया जब गीता का।
संगिनी हमेशा साथ रही,
व्यवहार निभाया सीता का।।
आधी कटी रही कुछ बाक़ी,
दायित्व पूर्ण कर लेना है।
राष्ट्र भक्ति प्रभु भक्ति में,
जीवन अर्पित कर देना है।।
गीता आर सदा प्रेरक,
जीवन में उसका पालन हो।
तथ्यों पर सोंच विचार करें,
तब ही उसपर अनुपालन हो।।
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