गणेश भारद्वाज - कठुआ (जम्मू व कश्मीर)
शव जीवित हैं - कविता - गणेश भारद्वाज
सोमवार, जनवरी 17, 2022
दाएँ-बाएँ, पीछे-आगे,
स्वार्थ हित सब भागे-भागे।
इस दुनियाँ में चलते-फिरते,
आते-जाते हमसे मिलते।
अपने हित में पाले ढब हैं,
सच पूछो तो सारे शव हैं।
निज भाषा का मान नहीं है,
राष्ट्र निज की आन नहीं हैं।
रिश्तों में अब प्राण नहीं हैं,
काया में भी जान नहीं है।
बोलो वे सब जीवित कब हैं?
कंपन करते सारे शव हैं।
कोई धन पा फूल रहा है,
मानव मूल्य भूल रहा है।
कोई चक्की पीस रहा है,
मन में उसके टीस रहा है।
अपने मन की करते सब हैं,
मानवता बिन सारे शव हैं।
अपनी-अपनी दुनियाँ सबकी,
छोड़ धरा वे सोचें नभ की।
परहित कार्य छोड़ चुके हैं,
बंधन सारे तोड़ चुके हैं।
चाल-चलन से बनते रब हैं,
मेरे मत में जीवित शव हैं।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर