सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)
स्वामी विवेकानंद - कविता - सीमा वर्णिका
बुधवार, जनवरी 12, 2022
धार्मिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का हुआ था ह्वास,
चारित्रिक व नैतिक सिद्धांतों का बना था परिहास।
सनातन धर्म-मूल्यों को भूला था सामाजिक परिवेश,
महान दृष्टा श्री विवेकानंद के रूप में दृष्टिगत आस।
प्रगतिशील, धार्मिक तथा मुखर थे वह किशोरपन से,
तीक्ष्ण मेधा, उत्साही तथा अनीश्वरवादी अन्तर्मन से।
ईश्वर के अस्तित्व पर अंतर्द्वंद्व ने उन्हें किया विकल,
लाक्षणिक खोज करते गहन शोध नवीन पुरातन में।
रामकृष्ण परमहंस दैवीय अनुकंपा से थे परम सिद्ध,
अध्यात्मिक व परमात्मिक शक्तियों हेतु थे प्रसिद्ध।
शिष्यत्व स्वीकार नरेंद्र तन्मय अध्यात्मिक चिंतन में,
सनातन चिरंतन सिद्धांत संज्ञाशून्यता किए अविद्ध।
आध्यात्मिक परमानंद का खुला सुपथ मिटा व्यथन,
आत्मिक पराशक्तियों का पाकर सशक्त अवलंबन।
गुरु श्रीमुख से नरेंद्र हुए परिणत विवेकानंद रूप में,
राष्ट्र हेतु भूत वर्तमान व भविष्य पर करने को मनन।
जनमानस की जीवनशैली को करा उत्कृष्ट व सशक्त,
भ्रमभंजित की धूर्त पाखंडीकृत कथाएँ अति वीभत्स।
अंधविश्वासों व रूढ़िवादिता का बिखरा था अंधकार,
धर्म के कथित ठेकेदार से थे बहुत भयभीत अंधभक्त।
दैदीप्यमान सूर्य के रूप में विवेकानंद हुए अभ्युदित,
चिरकालीन सुसुप्त प्रजा में प्राण ऊर्जा हुई स्पंदित।
परिणामस्वरुप उद्भूत राष्ट्रोत्थान का हुआ सूत्रपात,
महत्त कार्यों को संपादित करके किया मार्ग प्रशस्त।
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