ममता शर्मा 'अंचल' - अलवर (राजस्थान)
बस वही एक है जो अपना सा लगता है - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
शुक्रवार, फ़रवरी 18, 2022
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
तक़ती : 22 22 22 22 22 2
बस वही एक है जो अपना सा लगता है,
बाक़ी रिश्तों का रस सपना सा लगता है।
एकाग्र न होता और कहीं मन दुनिया में,
बस बेमन से माला जपना सा लगता है।
तप करें तपस्वी कहे भले दुनिया हमको,
तप उस बिन केवल तन तपना सा लगता है।
हों भाँति-भाँति के व्यंजन चाहे थाली में,
रुचि भोग बिना उसके चखना सा लगता है।
मेहनत करलें चाहे अच्छा परिणाम मिले,
फिर भी मन को केवल खपना सा लगता है।
दो घूँट मिले यदि जल उसके कर से अंचल
कर पात्र हमें पूरा नपना सा लगता है।
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