सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
इल्तिजा है मेरी - गीत - सिद्धार्थ गोरखपुरी
बुधवार, मार्च 23, 2022
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख़्वाबों में न अब बात कर
रू-ब-रू हो जा अब तूँ मेरे
आके मुझसे मुलाक़ात कर
याद आता है तूँ
तो सताता है तूँ
ख़्वाब में ही बस अपना
बताता है तूँ
आ जा तूँ रू-ब-रू
और कभी भी न जा
मैं तुझे ही देखता रहूँ रातभर
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख़्वाबों में न अब बात कर
गीत पावन है जो मनभावन सा है
प्रीत का हर मौसम सावन सा है
सूखा सा पड़ गया है प्रीत के खेत में
सींचने के लिए थोड़ी बरसात कर
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख़्वाबों में न अब बात कर
प्रेम के दरमयान दिल धड़कता रहा
तूँ रू-ब-रू था मेरे दिल तड़पता रहा
मैं बहाना बना दूँ तो चल जाएगा
पर दिल चाहता है तेरा साथ भर
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख़्वाबों में न अब बात कर।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर