शैलेश विश्वकर्मा - रामनगर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
बस यही सोचता हूँ - कविता - शैलेश विश्वकर्मा
सोमवार, मार्च 14, 2022
अब परिवर्तन कर ही लूँगा
बस यही सोचता हूँ,
बचपन बीता मुश्किलों में
जवानी बीत रही है भँवरजाल में,
सोचता हूँ तो घिर जाता हूँ
अपने ही विचारों में।
अब परिवर्तन कर ही लूँगा
बस यही सोचता हूँ,
कभी हताश, कभी निराश, कभी उत्साहित होता हूँ,
मन हवा सा रूख बदलता है
अस्थिरता है जो मुझमें,
थोड़ा भँवरजाल मे फँसता हूँ
फिर अपने ही विचारो को टटोलता हूँ,
अब परिवर्तन कर ही लूँगा
बस यही सोचता हूँ।
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