रमाकान्त सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)
महकती बहारें - कविता - रमाकांत सोनी
सोमवार, मार्च 28, 2022
फ़िज़ाओं में ख़ुशबू फैली खिल गए चमन सारे,
झूम-झूम लगे नाचने लो आई महकती बहारें।
वादियों में रौनक आई लबों पे मुस्कानें छाई,
प्रीत भरे तराने उमड़े मस्त-मस्त चली पुरवाई।
वृक्ष लताएँ डाली डाली पत्ता-पत्ता लहराने लगा,
मस्त बहारें चली सुहानी दिल दीवाना गाने लगा।
मन मयूरा मस्ती भर मदमाता इठलाता रहा,
बागों में कलियाँ खिली भँवरा गुनगुनाता रहा।
उमंगों ने ली अँगड़ाई करवट बदली मौसम ने,
चाहतों ने भी पंख पसारे महकती हुई बहारों में।
मधुर प्रेम रसधार बन, सद्भावों की बनकर धारा,
ख़ुशियों की बरसात कर, उमड़े उर प्रेम प्यारा।
मोहक मुस्कान बनकर, सबके दिल पर छा जाए,
ख़ुशियों का खजाना हो जीवन में बहारें आ जाए।
मधुर तराने गीतों के, मुरली की धुन लगती प्यारी,
गुलशन सारा महक उठे, फूलों की महके फुलवारी।
ठंडी-ठंडी मस्त हवाएँ दिलों तक दस्तक दे गई,
ख़ुशबुओं से समाँ महका महकती बहारें भा गई।
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