सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
चिलचिलाती धूप - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
बुधवार, मई 04, 2022
इस चिलचिलाती धूप ने
जीना किया दुश्वार है।
गर्म लू जलती फ़िज़ाएँ,
हर तरफ़ अंगार है।
आँधियाँ लू के थपेड़े,
मन बदन बेज़ार है।
पेट के ख़ातिर सभी को,
झेलना ये रार है।
बेबस ग़रीबो के लिए तो,
वक्त की भी मार है।
और ऊपर से भयंकर,
तपिश का भी वार है।
है पसीना में नहाया,
भाग्य से लाचार है।
हाँ अमीरों के लिए,
ऊटी मनाली यार है।
घर डगर हर जगह एसी,
क्या अजब संसार है।
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