नौशीन परवीन - रायपुर (छत्तीसगढ़)
तुमने मुझसे मेरा कमरा ही छीन लिया - कविता - नौशीन परवीन
गुरुवार, मई 19, 2022
तुमने मुझे दिया
तो एक कमरा
जिसमें फूलदान
हवादान,
दीवारों पर लगी सीनरी
जो हमारी गुमसुम सी
मुस्कान को बरक़रार
रखती थी
वह कमरा जो हमारी
तस्वीरों से भरा था
स्टडी टेबल जिस पर
बैठ कर मैं कुछ
कविताएँ लिखती थीं
चारो ओर से गहरा
सफ़ेद रंग का
इक कमरा
हर रोज़ मुझसे
अपने रंग बदल-बदल
कर बाते करता
भीनी-भीनी सी इत्र की
ख़ुशबू जो अब कमरे से
विदा ले चुकी थीं
तुम उसे अब डोली पर
बैठा कर
वापिस ले आए
तुमने मुझे दी पुनः
महकती हुई ख़ुशबू
तुमने मुझे दिया रात-बेरात
कि अनुपस्थिति
जिसे मैं
खुटे पर टाँगते हुए
बिस्तर पर सो जाती
हाँ तुमने मुझे दिया तो
एक कमरा
सारी सहूलियत
पर तुमने मेरे हिस्से का
सिंगारदान मुझसे छीन लिया
तुमने मुझसे मेरे हिस्से का
प्रेम छीन लिया
जिसमे उपलब्ध थीं
मेरी सारी ख़ुशियाँ
हक़ीक़त में
तुमने मुझसे
मेरा कमरा ही
छीन लिया था।
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