सूर्य मणि दूबे 'सूर्य' - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)
अपनी खोल से निकलकर - कविता - सूर्य मणि दूबे 'सूर्य'
बुधवार, जून 29, 2022
कभी अपनी खोल से निकलकर,
किसी के मन में झाँक कर देखो।
किसी के दुख दर्द को,
मन की आँखों से आँक कर देखो।
उनकी परिस्थितियों में जाकर,
एक पल जीकर देखो साथ उनके।
लड़ती है भूख उनसे, हारती है प्यास उनसे,
जीत भी पाता नहीं हर दर्द का अहसास उनसे।
कभी अपनी खोल से निकलकर,
किसी के मन में झाँक कर देखो।
रात भर बिलकते भूखे फटेहाल,
उन बच्चों संग सड़क पर जाग कर देखो।
एक निवाला दवा बनकर
दर्द मिटा सकता था लेकिन,
एक दया का हाथ बढ़कर
दुःख बंटा सकता था लेकिन,
तुम अपनी ही खोल में जीते रहे और
वो बिलखकर भुखमरी से मर गए।
जिन पत्थरों संग खेलते थे
उन पर ही रो-रो कर पसर गए।
अपनी खोल से निकलकर,
किसी के मन में झाँकता कोई क्यों नहीं?
दुख बाँट कर ख़ुशियाँ ही मिलती,
फिर भी बाँटता कोई क्यों नहीं?
कभी अपनी खोल से निकलकर,
किसी के मन में झाँक कर देखो।
किसी के दुख दर्द को,
मन की आँखो से आँक कर देखो।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर