चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव - प्रतापगढ़ (उत्तर प्रदेश)
प्रेम सरोकार - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
गुरुवार, जुलाई 21, 2022
मैं नंद गाँव का ग्वाला हूँ,
तू बरसाने की राग प्रिये।
मैं पुण्य भूमि का सरोवर हूँ,
तू पुष्कर रूपी प्रेम प्रिये।
मैं चलता हूँ जब आतप में,
तू छाया मेरी बनती है।
मैं रहता हूँ जब पीड़ा में,
तू औषधि मेरी बनती है।
मैं अवध भूमि का राघव हूँ,
तू जनक नंदिनी सीय प्रिये।
मैं नंद गाँव का ग्वाला हूँ,
तू बरसाने की राग प्रिये।
मैं पुण्य भूमि का सरोवर हूँ,
तू पुष्कर रूपी प्रेम प्रिये।
मैं रंझ-रंझ वंशी बजाता हूँ,
तू निज-निज ताल मिलाती है।
मैं सरगम-सी धुन लाता हूँ,
तू गीत प्रणय का गाती है।
मैं आगरा का शाहजहाँ,
तू सुंदरता में ताज प्रिये।
मैं नंद गाँव का ग्वाला हूँ,
तू बरसाने की राग प्रिये।
मैं पुण्य भूमि का सरोवर हूँ,
तू पुष्कर रूपी प्रेम प्रिये।
मेरी स्वाँस अलंकृत हो जाती,
तू साथ मेरे जब होती है।
मेरी हर दुविधा मिट जाती,
तू पास मेरे जब होती है।
मैं कुरु वंश का शांतनु हूँ,
तू सुरसरिता की रूप प्रिये।
मैं नंद गाँव का ग्वाला हूँ,
तू बरसाने की राग प्रिये।
मैं पुण्य भूमि का सरोवर हूँ,
तू पुष्कर रूपी प्रेम प्रिये।
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