श्याम सुन्दर अग्रवाल - जबलपुर (मध्यप्रदेश)
मन - कविता - श्याम सुन्दर अग्रवाल
मंगलवार, अगस्त 23, 2022
तेरा मेरा उसका मन,
अजब पहेली सबका मन,
मन का जाने मन न कोई,
मन ही जाने मन का मन।
चाहे ये हो जाए मन,
चाहे वो हो जाए मन,
भला कहीं पूरा होता है?
चाहे जो भी चाहे मन।
मन ही मन अटके है मन,
मन ही मन भटके है मन,
मन का मन ना रक्खे मन तो,
मन को ही खटके है मन ।
मन ही मन चहके है मन,
मन ही मन बहके है मन,
मन में मन की गंध बसे तो,
मन ही मन महके है मन।
पल में भोगी, त्यागी मन,
पल में पानी, आगी मन,
पल में रागी, पल बैरागी,
पल में साँझी, बाग़ी मन।
क्या दौड़ा क्या ठहरा मन,
क्या उथला क्या गहरामन,
होता है दस बीस कहाँ मन,
रहता सदा इकहरा मन।
क्षण उत्तर क्षण दक्षिण मन,
क्षण पूरब क्षण पश्चिम मन,
जाने कौन दशा-दिशि मन की,
क्षण में जड़, क्षण चेतन मन।
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