रविन्द्र दुबे 'बाबु' - कोरबा (छत्तीसगढ़)
सदा सुहागन - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'
सोमवार, अगस्त 29, 2022
जन्म-जन्म का साथ रहे, मेरे साजन का,
हर राह में हो हरदम साथ, पिया मनभावन का।
हे भोले बाबा शिव, माँ सती दो वरदान,
आरती करूँ माँगू मैं वर, सदा सुहागन का॥
आँखों का काजल, कान की बाली,
अधरों पर मुस्कान, हाथों की लाली।
माथे की बिंदिया, हाथों का कंगन,
मानू त्यौहार, गहनों से शृंगार का।
आरती करूँ माँगू मैं वर, सदा सुहागन का॥
मेरे सजना मेरे बिन ना रह पाएँगे,
ना मैं जी सकूँ बिन सजना कभी।
प्रभु अँगना मेरा महके, साज बनूँ,
चाहूँ रक्षा, मेरी सिंदूरी लाज का।
आरती करूँ माँगू मैं वर, सदा सुहागन का॥
फल बेल पतरी से तुमको सँवारूँ,
निर्जल व्रत से भाग अपना मैं खोलूँ।
पिया को मनाऊँ, 'बाबु' घर मैं सजाके,
मिल जाए दुलार, सखी मात पिता का।
आरती करूँ माँगू मैं वर, सदा सुहागन का॥
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