भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क' - शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)
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कविता
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भगवान कृष्ण
कान्हा तेरी बाँसुरी - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
कान्हा तेरी बाँसुरी - कुण्डलिया छंद - भगवती प्रसाद मिश्र 'बेधड़क'
गुरुवार, अगस्त 25, 2022
कान्हा तेरी बाँसुरी, अन्तर्मन का साज।
दौड़ी आएँ गोपियाँ, सुन मुरली आवाज़॥
सुन मुरली आवाज़, रंग में भंग मिलावै।
दे छछिया भर छाछ, कन्हैया लला नचावै॥
कहें बेधड़क बंधु, सुनें धुन मुरली नाना।
बढ़ती मन की प्यास, नचाएँ गोपी कान्हा॥
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