आशीष कुमार - रोहतास (बिहार)
तेरे रूप अनेक हैं मैया - कविता - आशीष कुमार
सोमवार, सितंबर 26, 2022
तेरे रूप अनेक हैं मैया,
हर रूप में हमको भाती हो।
नवरात्रि में नौ दुर्गा रूप में,
हम पर ममता लुटाती हो।
तीनों लोक हैं काँपे तुमसे,
जब शक्ति रूप धरती हो।
चण्ड-मुण्ड और ऐसे कितने,
महिषासुर मर्दन करती हो।
तुम बनती हो लक्ष्मी माँ,
सारा संसार चलाती हो।
धन की वर्षा करती जब,
कुटिया भी महल बनाती हो।
जब बनती हो वीणापाणि,
ज्ञान का दीप जलाती हो।
हम जैसे भूले-भटकों को,
मंज़िल तक पहुँचाती हो।
बन कर तुम अन्नपूर्णा माँ,
भूखों का पेट भरती हो।
पशु पक्षी और मानव जन में,
कोई भेद ना करती हो।
ममता का प्रतिशोध जब लेती,
कालरात्रि बन जाती हो।
थर-थर काँपे देवता दानव,
रौद्र रूप दिखलाती हो।
उद्धार करना हो जब भक्तों का,
स्वर्ग छोड़ चली आती हो।
पतित पावनी हे माँ गंगे!
बैकुण्ठ भी पहुँचाती हो।
कोई परीक्षा लेवे मैया,
ज्वाला बनकर दिखलाती हो।
बादशाह भी नतमस्तक हो गए,
सोने को भी झूठलाती हो।
है कोई ढूँढ़ता मंदिर-मंदिर,
पहाड़ों पर भी मिल जाती हो।
सच्चे मन से कोई ढूँढ़े,
अंतर्मन में मिल जाती हो
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर