अखिलेश श्रीवास्तव - जबलपुर (मध्यप्रदेश)
चिट्ठी - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
शनिवार, अक्टूबर 08, 2022
दूर बसे अपने लोगों की,
ख़ैर-ख़बर लाती थी चिट्ठी।
पोस्टमैन घर-घर में जाकर,
पहुँचाते थे सबकी चिट्ठी॥
अपने लोगों की यादों को,
सँजोकर रखती थी चिट्ठी।
घर में उत्सुकता बढ़ जाती,
जब आती थी कोई चिट्ठी॥
अपनों के आपस के प्यार की,
अभिव्यक्ति होती थी चिट्ठी।
शब्दों के मोती की माला,
होती थी ये प्यारी चिट्ठी॥
प्रेमी-प्रेयसी के प्यार की,
गहराई होती थी चिट्ठी।
रिश्तों के प्यारे सम्बन्धों,
को दर्शाती थी ये चिट्ठी॥
परीक्षा के परिणामों की,
ख़बर हमें लाती थी चिट्ठी।
नौकरी लग जाने की ख़बर,
ख़ुशी से लेकर आती चिट्ठी॥
रिश्ते नातों के विवाह की,
ख़बर हमें पहुँचाती चिट्ठी।
नए शिशु के आने का भी,
संदेशा लाती थी चिट्ठी॥
इंतज़ार पोस्टमैन भैया का,
करवाती थी हमें ये चिट्ठी।
अपने बीते हुए समय की,
याद दिलाती है ये चिट्ठी॥
इतिहास बनकर हमेशा,
सबके काम में आती चिट्ठी।
लिपिबद्ध होकर हम सबकी,
यादों में बस जाती चिट्ठी॥
एक समय था जब हमारी,
प्राण वायु होती थी चिट्ठी।
फिर से हम सबकी सेवा,
करना चाहती है ये चिट्ठी॥
आज सभी से हाथ जोड़कर,
विनती करती है ये चिट्ठी।
फिर से मुझे बना लो अपना,
यही आस लगाए चिट्ठी॥
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