डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी' - गिरिडीह (झारखण्ड)
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झारखण्ड के अमर शहीदों को जोहार : अमर शहीद रघुनाथ महतो - धारावाहिक आलेख - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
झारखण्ड के अमर शहीदों को जोहार : अमर शहीद रघुनाथ महतो - धारावाहिक आलेख - डॉ॰ ममता बनर्जी 'मंजरी'
गुरुवार, नवंबर 17, 2022
अमर शहीद रघुनाथ महतो
जन्म - 21 मार्च, 1738
मृत्यु - 5 अप्रैल, 1778
तत्कालीन बंगाल के मानभूम अर्थात छोटानागपुर के जंगलमहल जिले के अंतर्गत नीमडीह प्रखंड के एक छोटा सा गाँव घुटियाडीह में रघुनाथ महतो का जन्म हुआ था।
रघुनाथ बचपन से ही प्रतिभासंपन्न थे किंतु उपयुक्त परिवेश के अभाव में अन्य क्षेत्रों में उन्हें अपनी प्रतिभा को उजागर करने का अवसर उन्हें नहीं मिला। सच कहा जाए तो मिलता भी कैसे जब उस क्षेत्र के स्थानीय निवासियों को ब्रिटिशों द्वारा उत्पाती या लुटेरा के अर्थ में चूहाड़ कहकर बुलाया जाता हो और उनकी जल, जंगल, ज़मीन और स्वतंत्रता हड़पने की तैयारी करने की कोशिश में उनपर ज़ुल्म ढाया जा रहा हो और मालगुज़ारी वसूलने के बहाने उनका शोषण किया जा रहा हो।
ऐसी परिस्थिति में वहाँ के कुड़मी समाज के लोगों के साथ-साथ जवानी की दहलीज़ में क़दम रखने वाले रघुनाथ महतो के मन में ग़ुस्सा और क्षोभ उत्पन्न होना स्वाभाविक था। परिणाम यह हुआ कि स्थिति प्रतिकूल बनती गई और रघुनाथ महतो के नेतृत्व में ब्रिटिश शासकों के ख़िलाफ़ क्रांति का बिगुल फूँका गया।
देखते ही देखते रघुनाथ महतो की समर्थकों की संख्या बढ़ने लगी। इसी क्रम में चुहाड़ आंदोलन प्रारंभ हो गया जिसका फैलाव धीरे-धीरे नीमडीह, पातकुम, किंचुग परगना (सरायकेला, खरसांवा, राजनगर, गम्हरिया आदि तक) हो गया।
चुहाड़ आंदोलन की आक्रामकता इस क़दर थी कि 1774 ई॰ में इन्होनें किंचुग परगना के मुख्यालय में पुलिस फोर्स को घेर कर मार डाला। इस भयानक घटना के बाद अंग्रेजों ने किंचुग पर अधिकार करने का विचार ही छोड़ दिया।लेकिन उनके द्वारा विद्रोहियों पर फ़ौजी कार्रवाई लगातार जारी रही।
सन् 1776 में आंदोलन का केंद्र राँची ज़िले का सिल्ली प्रखंड बना। रघुनाथ महतो सदल-बल अंग्रेजों के ख़िलाफ़ नित नई योजनाएँ बनाने लगे। इसी क्रम में 5 अप्रैल 1778 को वे सिल्ली प्रखंड के लोटा पहाड़ के किनारे की रामगढ़ छावनी से हथियार लूटने की योजना को लेकर बैठक कर रहे थे तो गुप्त सूचना के आधार पर अंग्रेज सेना ने रघुनाथ महतो और उनके समूचे दल को चारों ओर से घेर लिया। दोनों ओर से काफ़ी देर तक दनादन गोलियाँ चलती रही लेकिन दुर्भाग्यवश रघुनाथ महतो को अपने कई सहयोगियों के साथ गोलियों का शिकार होना पड़ा और हमेशा के लिए अमर शहीदों में उनके नाम झारखण्ड के इतिहास में उल्लेखित हो गया।
तो आइए हम शहीद रघुनाथ महतो के साथ झारखण्ड के सारे अमर भूमिपुत्रों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करें और सगर्वित कहें- 'जोहार'!
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